Thursday, December 5, 2013

भारत के मध्यकाल के प्रसिद्ध चमत्कारिक हिन्दू संत



मध्यकाल के प्रसिद्ध चमत्कारिक हिन्दू संत
मध्यकाल में जब अरब, तुर्क और ईरान के मुस्लिम शासकों द्वारा भारत में हिन्दुओं पर अत्याचार कर उनका धर्मांतरण किया जा रहा था, तो उस काल में हिन्दू-मुस्लिम एकता के लिए सैकड़ों सिद्ध, संतों और सूफी साधुओं का जन्म हुआ। मध्यकाल के लगभग सभी सिद्धों के बारे में संक्षिप्त जानकारी हमने यहां जुटाई है। इसका दूसरा भाग प्रस्तुत है। ये सारे सिद्ध संत गुरु गोरखनाथ और शंकराचार्य के बाद के हैं। ईस्वी सन् 500 से ईस्वी सन 1800 तक के काल को मध्यकाल माना जाता है।
1. गोगादेव जाहर वीर : (950 ईस्वी) : चौहान वंश में जन्मे ये राजस्थान के प्रसिद्ध चमत्कारिक सिद्ध पुरुष हैं। सिद्ध वीर गोगादेव का जन्मस्थान राजस्थान के चुरु जिले के दत्तखेड़ा में स्थित है।

मध्यकालीन महापुरुष गोगाजी हिन्दू, मुस्लिम, सिख संप्रदायों की श्रद्घा अर्जित कर एक धर्मनिरपेक्ष लोकदेवता के नाम से पीर के रूप में प्रसिद्ध हुए। पिता का नाम जेवर सिंह, माता का नाम बादलदे, पत्नी का नाम कमलदे था। आप नीली घोड़ी पर सवारी करते थे।
2. झूलेलाल : (10वीं सदी) : सिंध प्रांत (पाकिस्तान)। सिंध प्रांत के हिन्दुओं की रक्षार्थ वरुण का अवतार। सिंध प्रांत में मरखशाह नामक एक क्रूर मुस्लिम राजा के अत्याचार और हिन्दू जनता को समाप्त करने के कुचक्र के चलते झूलेलाल का अवतार हुआ और उन्होंने हिन्दू-मुस्लिम एकता का पाठ पढ़ाया।
3. वीर तेजाजी महाराज : (29-1-1074 से 28-8-1103) : राजस्थान, मध्यप्रदेश और गुजरात के प्रसिद्ध सिद्ध पुरुष। तेजाजी का जन्म राजस्थान के नागौर जिले में खरनाल गांव में हुआ। ये राजस्थान के 6 चमत्कारिक सिद्धों में से एक हैं। यह सबसे बड़े गौ रक्षक माने गए हैं।

गायों की रक्षा के लिए इन्होंने अपने प्राणों की बलि तक दे दी। तेजाजी के वंशज मध्यभारत के खिलचीपुर से आकर मारवाड़ मे बसे थे। पिता का नाम ताहड़ की जाट, माता का नाम राजकुंवर, पत्नी का नाम पेमलदे, घोड़ी का नाम लीलण।
4. संत नामदेव : (1267 में जन्म) गुरु विसोबा खेचर थे। गुरुग्रंथ और कबीर के भजनों में इनके नाम का उल्लेख मिलता है। ये महाराष्ट्र के पहुंचे हुए संत हैं। संत नामदेवजी का जन्म कबीर से 130 वर्ष पूर्व महाराष्ट्र के जिला सातारा के नरसी बामनी गांव में हुआ था। उन्होंने ब्रह्मविद्या को लोक सुलभ बनाकर उसका महाराष्ट्र में प्रचार किया तो संत नामदेवजी ने महाराष्ट्र से लेकर पंजाब तक उत्तर भारत में 'हरिनाम' की वर्षा की।
5. संत ज्ञानेश्‍वर : सन् (1275 से 1296 ई.) : संत ज्ञानेश्वर का जन्म महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले में पैठण के पास आपेगांव में भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को हुआ था। ज्ञानेश्वर ने भगवद् गीता के ऊपर मराठी भाषा में एक 'ज्ञानेश्वरी' नामक 10,000 पद्यों का ग्रंथ लिखा है।
6. रामानंद : (1299 ई. से 1410 ई.) : वैष्णवाचार्य स्वामी रामानंद का जन्म प्रयाग में हुआ था। अनंतानंद, संत कबीर, सुखानंद, सुरसुरानंद, पद्मावती, नरहर्यानंद, पीपा, भावानंद, रैदास (रवि दास) धन्ना सेन और सुरसुरी आदि रामानंद के शिष्य थे।
7. कबीर : (जन्म- सन् 1398 काशी - मृत्यु- सन् 1518 मगहर) : संत कबीर का जन्म काशी के एक जुलाहे के घर हुआ था। पिता का नाम नीरु और माता का नाम नीमा था। इनके दो संतानें थीं- कमाल, कमाली। मगहर में 120 वर्ष की आयु में उन्होंने समाधि ले ली।
8. पीपा : (1379 से 1490) : संत पीपा का जन्म चैत्र सुदी 15, वि.सं. 1380 अर्थात 1323 ई. को हुआ और देहांत चैत्र सुदी 1, वि.सं. 1441 अर्थात 1384 ई. को हुआ, जबकि शोधानुसार पीपा राव का शासनकाल वि.सं. 1323-1348 तक रहा।
9. बाबा रामदेव (1352-1385) : इन्हें द्वारिका‍धीश का अवतार माना जाता है। इन्हें पीरों का पीर रामसा पीर कहा जाता है। सबसे ज्यादा चमत्कारिक और सिद्ध पुरुषों में इनकी गणना की जाती है। हिन्दू-मुस्लिम एकता के प्रतीक बाबा रामदेव के समाधि स्थल रुणिचा में मेला लगता है, जहां भारत और पाकिस्तान से लाखों की तादाद में लोग आते हैं।

विक्रम संवत 1409 को उडूकासमीर (बाड़मेर) उनका जन्म हुआ था और विक्रम संवत 1442 में उन्होंने रूणिचा में जीवित समाधि ले ली। पिता का नाम अजमालजी तंवर, माता का नाम मैणादे, पत्नी का नाम नेतलदे, गुरु का नाम बालीनाथ, घोड़े का नाम लाली रा असवार।
10. पाबूजी : (1362) विक्रम संवत 1313 में जोधपुर जिले के फलौदी के पास कोलूमंड गांव में हुआ। आपको लक्ष्मण का अवतार माना जाता है। प्रतिवर्ष चैत्र अमावस्या को कोलू में मेला भरता है। इनकी फड़ का वाचन भील जाति के नायक भोपे करते है| आपकों ऊंटों, गायों और घोड़ा का रक्षक माना जाता है।
11. मेहाजी मांगलिया : () राजस्थान के पांच पीरों में से एक मेहाजी मांगलिया सांखला क्षत्रिय परिवार से थे। वे जन्म से ही ननिहाल में रहते थे और इनका पालन-पोषण वहीं हुआ। वे मारवाड़ के राव चूड़ा के समकालीन थे। राजस्थान के वापिणी (ओसियां, जोधपुर) में प्रतिवर्ष भाद्रपद कृष्ण अष्टमी (जन्माष्टमी) को मेला भरता है। जैसलमेर के राणंग देव भाटी से युद्ध करते हुए वे वीरगति को प्राप्त हो गए। पिता का नाम धांधलजी राठौड़, माता का नाम कमलादे, पत्नी का नाम सुप्यारदे, घोड़ी का नाम केसर कमली है।
12. हड़बू : (1438-89 ई.) : जैसलमेर के हड़बूजी सांखला राव क्षत्रिय परिवार से थे। राजस्थान के राव जोधा के समकालीन थे। बेगटी गांव (फलौदी, जोधपुर) में इनका प्रमुख मंदिर है जहां इनकी गाड़ी की पूजा की जाती है। आप रामदेवजी के मौसेरे भाई थे। इनके गुरु बालकनाथ थे।
13. रैदास (1398 से 1518 ई.) : संत कुलभूषण कवि रैदास यानी सं‍त रविदास का जन्म सन् 1398 में काशी (उत्तरप्रदेश, भारत) में हुआ था। मीरा के समकालीन थे। कुछ लोग इन्हें मीरा का गुरु मानते हैं। पिता का नाम रग्घु और माता का नाम घुरविनिया था। प्रसिद्ध वाक्य 'मन चंगा तो कठौती में गंगा'
13. रैदास (1398 से 1518 ई.) : संत कुलभूषण कवि रैदास यानी सं‍त रविदास का जन्म सन् 1398 में काशी (उत्तरप्रदेश, भारत) में हुआ था। मीरा के समकालीन थे। कुछ लोग इन्हें मीरा का गुरु मानते हैं। पिता का नाम रग्घु और माता का नाम घुरविनिया था। प्रसिद्ध वाक्य 'मन चंगा तो कठौती में गंगा'
13. रैदास (1398 से 1518 ई.) : संत कुलभूषण कवि रैदास यानी सं‍त रविदास का जन्म सन् 1398 में काशी (उत्तरप्रदेश, भारत) में हुआ था। मीरा के समकालीन थे। कुछ लोग इन्हें मीरा का गुरु मानते हैं। पिता का नाम रग्घु और माता का नाम घुरविनिया था। प्रसिद्ध वाक्य 'मन चंगा तो कठौती में गंगा'

16. संत धन्ना : (1415 ईस्वी में) धन्ना का जन्म राजस्थान के टोंक जिले के धुवन गांव में विक्रम संवत 1472 में एक जाट परिवार में हुआ। बनारस जाकर वे रामानंद के शिष्य बन गए थे।

17. तुलसीदास : (जन्म 1532 ई.-मृत्यु 1623 ई.) : हनुमान चालीसा और श्रीरामचरित मानस के रचयिता गोस्वामी तुलसीदास का जन्म उत्तरप्रदेश के बांदा जिले के राजापुर गांव में हुआ था। उनके पिता का नाम आत्माराम दुबे तथा माता का नाम हुलसी था। इनका विवाह दीनबंधु पाठक की पुत्री रत्नावली से हुआ था। इनके गुरु बाबा नरहरिदास थे, जिन्होंने इन्हें दीक्षा दी। इनका अधिकांश जीवन चित्रकूट, काशी तथा अयोध्या में बीता। कुछ लोग उनका जन्म 1497 ई. को मानते हैं। काशी में उनका देहांत हुआ। उन्होंने वैराग्य संदीपनी, जानकी मंगल, पार्वती मंगल, संकटमोचन हनुमानाष्टक, हनुमान बाहुक, विनयपत्रिका, दोहावली, कवितावली आदि अनेक ग्रंथों की रचना की। इतना ही नहीं, वे संस्कृत के विद्वान और हिन्दी के सर्वश्रेष्ठ कवि माने जाते हैं।

18. दादू दयाल (जन्म 1544 ई. - मृत्यु 1603 ई.) : संत गरीबदास (1579-1636) दादू दयाल के पुत्र थे। ये गुजरात के प्रसिद्ध संत थे। इन्हें हिन्दी, गुजराती, राजस्थानी भाषा याद थी। दादू के संत रज्जब, प्रसिद्ध कवि सुंदर दास, जगन्नाथ सहित 152 शिष्य थे। दादू तुलसीदास के समकालीन थे। वे अहमदाबाद के एक धुनिया के पुत्र और मुगल सम्राट शाहजहां (1627-58) के समकालीन थे। पिता लोदीराम और माता बसी बाई थी।

19. मलूक दास : (1574 से 1682) : चमत्कारिक संत बाबा मलूकदास का जन्म लाला सुंदरदास खत्री के घर वैशाख कृष्ण 5, संवत् 1631 में कड़ा, जिला इलाहाबाद में हुआ। इनकी मृत्यु 108 वर्ष की अवस्था में संवत् 1739 में हुई। ये औरंगजेब के समय में थे। इनकी गद्दियां कड़ा, जयपुर, गुजरात, मुलतान, पटना, नेपाल और काबुल तक में कायम हुईं। वृंदावन में वंशीवट क्षेत्र स्थित मलूक पीठ में संत मलूकदास की जाग्रत समाधि है। इन्हीं का यह प्रसिद्ध दोहा है- 'अजगर करै न चाकरी, पंछी करै न काम। दास मलूका कहि गए, सबके दाता राम।'

20. संत पलटू : अयोध्या के पास रामकोट में संत पलटू का समाधि स्थल है। इनके जन्म का कोई खास ब्योरा नहीं है। इनके शिष्य हुलासदास के ग्रंथ 'ब्रह्मविलास' में इनका जन्मकाल माघ सुदी 7 रविवार, सं. 1826 बतलाया गया कहा जाता है, किंतु ऐसा लगता है कि यह स्वयं उनके इनसे दीक्षा ग्रहण करने का ही समय होगा। संत पलटू साहब जाति के कांदू बनिया थे और ये नगजलालपुर (जि. फैजाबाद), में जो आजमगढ़ जिले की पश्चिमी सीमा के निकट वर्तमान है, उत्पन्न हुए थे। कहा जाता है कि ये संत भीखादास के शिष्य थे।

21. चरणदास (1703-1782) : चरणदास के पिता मुरलीधर राजस्थान के डेहरा गांव के रहने वाले ढूसर बनिया कुल के थे। पिता के स्वर्गवास के पश्चात चरणदास दिल्ली में रहने लगे। चरणदास ने 14 वर्ष तक योगाभ्यास किया और कई सिद्धियां प्राप्त कीं। सहजो बाई और दया बाई चरणनदास की शिष्या थीं।

22. सहजो बाई (जन्म 1725 ई.- मृत्यु 1805 ई) : प्रसिद्ध संत कवि चरणदास की शिष्या भक्तिमती सहजो बाई का जन्म 25 जुलाई 1725 ई. को दिल्ली के परीक्षितपुर नामक स्थान में हुआ था। इनके पिता का नाम हरिप्रसाद और माता का नाम अनूपी देवी था। ग्यारह वर्ष की आयु में सहजो बाई के विवाह के समय एक दुर्घटना में वर का देहांत हो गया। उसके बाद उन्होंने संत चरणदास का शिष्यत्व स्वीकार कर लिया और आजीवन ब्रह्मचारिणी रहीं। सहजो बाई चरणदास की प्रथम शिष्या थीं। इन्होंने अपने गुरु से ज्ञान, भक्ति और योग की विद्या प्राप्त की। 24 जनवरी सन् 1805 ई. को भक्तिमती सहजो बाई ने वृंदावन में देहत्याग किया।

23. दया बाई : ये राजस्थान के कोटकासिम के डेहरा गांव की निवासी थीं। संत चरणदास के चाचा केशव की पुत्री थीं। ये मां से कथा सुनने के बाद कृष्ण भक्ति में लीन होती गईं और विवाह न करके संत चरणदास की शरण में चली गईं। इन्होंने दयाबोधनामक ग्रंथ की रचना की। इनकी मृत्यु बिठुर में हुई थी।

24. संत एकनाथ : (1533 ई.-1599 ई.) : महाराष्ट्र के संतों में नामदेव के पश्चात दूसरा नाम एकनाथ का ही आता है। इनका जन्म पैठण में हुआ था। ये वर्ण से ब्राह्मण जाति के थे। इन्होंने जाति प्रथा के विरुद्ध आवाज उठाई तथा अनुपम साहस के कारण कष्ट भी सहे। इनकी प्रसिद्धि भागवत पुराण के मराठी कविता में अनुवाद के कारण हुई। दार्शनिक दृष्टि से ये अद्वैतवादी थे।

25. संत तुकाराम : (1577-1650) महाराष्ट्र के प्रमुख संतों और भक्ति आंदोलन के कवियों में एक तुकाराम का जन्म महाराष्ट्र राज्य के पुणे जिले के अंतर्गत 'देहू' नामक ग्राम में शक संवत् 1520 को अर्थात सन् 1598 में हुआ था। इनके पिता का नाम 'बोल्होबा' और माता का नाम 'कनकाई' था। तुकाराम ने फाल्गुन माह की कृष्ण द्वादशी शाक संवत 1571 को देह विसर्जन किया। इनके जन्म के समय पर मतभेद हैं। कुछ विद्वान इनका जन्म समय 1577, 1602, 1607, 1608, 1618 एवं 1639 में और 1650 में उनका देहांत होने को मानते हैं। ज्यादातर विद्वान 1577 में उनका जन्म और 1650 में उनकी मृत्यु होने की बात करते हैं।

26. समर्थ रामदास (1608-1681) : समर्थ रामदास का जन्म महाराष्ट्र के औरंगाबाद ज़िले के जांब नामक स्थान पर शके 1530 में हुआ। इनका नाम नारायण सूर्याजीपंत कुलकर्णीथा। उनके पिता का नाम सूर्याजी पंत और माता का नाम राणुबाई था। वे राम और हनुमान के भक्त और वीर शिवाजी के गुरु थे। उन्होंने शक संवत 1603 में 73 वर्ष की अवस्था में महाराष्ट्र में सज्जनगढ़ नामक स्थान पर समाधि ली।

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