Wednesday, October 30, 2013

कैसे प्रसन्न करें देवताओं के वैद्य धनवंतरी को…….धनतेरस दिनांक ०१ नवम्बर २०१३




धनतेरस, धनवंतरी त्रयोदशी या धन त्रयोदशी दीपावली से पूर्व मनाया जाना महत्वपूर्ण पर्व है। इस दिन आरोग्य के देवता धनवंतरी, मृत्यु के अधिपति यम, वास्तविक धन संपदा की अधिष्ठात्री देवी लक्ष्मी तथा वैभव के स्वामी कुबेर की पूजा की जाती है

इस त्योहार को मनाए जाने के पीछे मान्यता है कि लक्ष्मी के आह्वान के पहले आरोग्य की प्राप्ति और यम को प्रसन्न करने के लि कर्मों का शुद्धिकरण अत्यंत आवश्यक है।
* कुबेर भी आसुरी प्रवृत्तियों का हरण करने वाले देव हैं।

* धनवंतरी और मां लक्ष्मी का अवतरण समुद्र मंथन से हुआ था। दोनों ही कलश लेकर अवतरित हुए थे।

* श्री सूक्त में लक्ष्मी के स्वरूपों का विवरण कुछ इस प्रकार मिलता है।

धनमग्नि, धनम वायु, धनम सूर्यो धनम वसु:

अर्थात् प्रकृति ही लक्ष्मी है और प्रकृति की रक्षा करके मनुष्य स्वयं के लिए ही नहीं, अपितु नि:स्वार्थ होकर पूरे समाज के लिए लक्ष्मी का सृजन कर सकता है।
* श्री सूक्त में आगे यह भी लिखा गया है- न क्रोधो न मात्सर्यम न लोभो ना अशुभा मति:

तात्पर्य यह कि जहां क्रोध और किसी के प्रति द्वेष की भावना होगी, वहां मन की शुभता में कमी आएगी, जिससे वास्तविक लक्ष्मी की प्राप्ति में बाधा उत्पन्न होगी। यानी किसी भी प्रकार की मानसिक विकृतियां लक्ष्मी की प्राप्ति में बाधक हैं।
* आचार्य धनवंतरी के बताए गए मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य संबंधी उपाय अपनाना ही धनतेरस का प्रयोजन है।

* श्री सूक्त में वर्णन है कि, लक्ष्मी जी भय और शोक से मुक्ति दिलाती हैं तथा धन-धान्य और अन्य सुविधाओं से युक्त करके मनुष्य को निरोगी काया और लंबी आयु देती हैं।
* कैसे प्रसन्न करें देवताओं के वैद्य धनवंतरी को…….
हिन्दू धर्म में धनवंतरी देवताओं के वैद्य माने गए हैं। धनवंतरी महान चिकित्सक थे। हिन्दू धार्मिक मान्यताओं के अनुसार धनवंतरी भगवान विष्णु के अवतार समझे गए हैं। समुद्र मंथन के दौरान धनवंतरी का पृथ्वी लोक में अवतरण हुआ था।

शरद पूर्णिमा को चंद्रमा, कार्तिक द्वादशी को कामधेनु गाय, त्रयोदशी को धन्वंतरी, चतुर्दशी को काली माता और अमावस्या को भगवती लक्ष्मी जी का सागर से प्रादुर्भाव हुआ था। इसीलिए दीपावली के दो दिन पूर्व धनतेरस को भगवान धनवंतरी का जन्म धनतेरस के रूप में मनाया जाता है।

भगवाण धनवंतरी को प्रसन्न करने का अत्यंत सरल मंत्र है:

ॐ धन्वंतरये नमः॥
धनवंतरी देव का पौराणिक मंत्र….
ॐ नमो भगवते महासुदर्शनाय वासुदेवाय धन्वंतराये:
अमृतकलश हस्ताय सर्व भयविनाशाय सर्व रोगनिवारणाय
त्रिलोकपथाय त्रिलोकनाथाय श्री महाविष्णुस्वरूप
श्री धनवंतरी स्वरूप श्री श्री श्री औषधचक्र नारायणाय नमः

अर्थात् परम भगवन को, जिन्हें सुदर्शन वासुदेव धनवंतरी कहते हैं, जो अमृत कलश लिए हैं, सर्व भयनाशक हैं, सर्व रोग नाश करते हैं, तीनों लोकों के स्वामी हैं और उनका निर्वाह करने वाले हैं; उन विष्णु स्वरूप धनवंतरी को सादर नमन है।

पवित्र धनवंतरी स्तो‍त्र………

ॐ शंखं चक्रं जलौकां दधदमृतघटं चारुदोर्भिश्चतुर्मिः।
सूक्ष्मस्वच्छातिहृद्यांशुक परिविलसन्मौलिमंभोजनेत्रम॥
कालाम्भोदोज्ज्वलांगं कटितटविलसच्चारूपीतांबराढ्यम।
वन्दे धन्वंतरिं तं निखिलगदवनप्रौढदावाग्निलीलम

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