दोस्तों ०५ अक्टूबर से नवरात्र शरू हो रही है |
नवरात्रि क्या है ??
वैज्ञानिक और आध्यात्मिक रहस्य
नवरात्र शब्द से नव अहोरात्रों (विशेष रात्रियां) का बोध होता है ।
इस समय शक्ति के नव रूपों की उपासना की जाती है ।
'रात्रि' शब्द सिद्धि का प्रतीक है ।
भारत के प्राचीन ऋषि-मुनियों ने रात्रि को दिन की अपेक्षा अधिक महत्व दिया है ।
इसलिए दीपावली, होलिका, शिवरात्रि और नवरात्र आदि उत्सवों को रात में ही मनाने की परंपरा है ।
यदि रात्रि का कोई विशेष रहस्य न होता, तो ऐसे उत्सवों को रात्रि न कह कर दिन ही कहा जाता ।
लेकिन नवरात्र के दिन, नवदिन नहीं कहे जाते ।
मनीषियों ने वर्ष में दो बार नवरात्रों का विधान बनाया है ।
चैत्र शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नौ दिन अर्थात नवमी तक ।
और इसी प्रकार ठीक छह मास बाद आश्विन शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से महानवमी अर्थात विजयादशमी के एक दिन पूर्व तक ।
परंतु सिद्धि और साधना की दृष्टि से शारदीय नवरात्रों को ज्यादा महत्वपूर्ण माना गया है ।
इन नवरात्रों में लोग अपनी आध्यात्मिक और मानसिक शक्ति संचय करने के लिए अनेक प्रकार के व्रत, संयम, नियम, यज्ञ, भजन, पूजन, योग साधना आदि करते हैं ।
कुछ साधक इन रात्रियों में पूरी रात पद्मासन या सिद्धासन में बैठकर आंतरिक त्राटक या बीज मंत्रों के जाप द्वारा विशेष सिद्धियां प्राप्त करने का प्रयास करते हैं ।
किँतु आजकल अधिकांश उपासक शक्ति पूजा रात्रि में नहीं, बल्कि पुरोहित को दिन में ही बुलाकर संपन्न करा देते हैं ।
अब तो पंडित और साधु-महात्मा भी अब नवरात्रों में पूरी रात जागना नहीं चाहते और न कोई आलस्य को त्यागना चाहता है ।
मनीषियों ने रात्रि के महत्व को अत्यंत सूक्ष्मता के साथ वैज्ञानिक परिप्रेक्ष्य में समझने और समझाने का प्रयत्न किया ।
रात्रि में प्रकृति के बहुत सारे अवरोध खत्म हो जाते हैं ।
आधुनिक विज्ञान भी इस बात से सहमत है ।
हमारे ऋषि-मुनि आज से हजारों वर्ष पूर्व ही प्रकृति के इन वैज्ञानिक रहस्यों को जान चुके थे ।
दिन में आवाज दी जाए तो वह दूर तक नहीं जाएगी, किंतु रात्रि को आवाज दी जाए तो वह बहुत दूर तक जाती है ।
इसके पीछे दिन के कोलाहल के अलावा एक वैज्ञानिक तथ्य यह भी है कि दिन में सूर्य की किरणें आवाज की तरंगों और रेडियो तरंगों को आगे बढ़ने से रोक देती हैं ।
रेडियो इस बात का जीता-जागता उदाहरण है ।
कम शक्ति के रेडियो स्टेशनों को दिन में पकड़ना अर्थात सुनना मुश्किल होता है, जबकि सूर्यास्त के बाद छोटे से छोटा रेडियो स्टेशन भी आसानी से सुना जा सकता है ।
वैज्ञानिक सिद्धांत यह है कि सूर्य की किरणें दिन के समय रेडियो तरंगों को जिस प्रकार रोकती हैं, उसी प्रकार मंत्र जाप की विचार तरंगों में भी दिन के समय रुकावट पड़ती है ।
इसीलिए ऋषि-मुनियों ने रात्रि का महत्व दिन की अपेक्षा बहुत अधिक बताया है ।
जो इस वैज्ञानिक तथ्य को ध्यान में रखते हुए रात्रियों में संकल्प और उच्च अवधारणा के साथ अपने शक्तिशाली विचार तरंगों को वायुमंडल में भेजते हैं, उनकी कार्यसिद्धि अर्थात मनोकामना सिद्धि, उनके शुभ संकल्प के अनुसार उचित समय और ठीक विधि के अनुसार करने पर अवश्य होती है ।
पृथ्वी द्वारा सूर्य की परिक्रमा के काल में एक साल की चार संधियाँ हैं ।
उनमें मार्च व सितंबर माह में पड़ने वाली गोल संधियों में साल के दो मुख्य नवरात्र पड़ते हैं ।
इस समय रोगाणु आक्रमण की सर्वाधिक संभावना होती है ।
ऋतु संधियों में अक्सर शारीरिक बीमारियाँ बढ़ती हैं, अत: उस समय स्वस्थ रहने के लिए, शरीर को शुध्द रखने के लिए और तनमन को निर्मल और पूर्णत: स्वस्थ रखने के लिए की जाने वाली प्रक्रिया का नाम 'नवरात्र' है ।
अमावस्या की रात से नवमी की दोपहर तक व्रत नियम चलने से नौ रात यानी 'नवरात्र' नाम सार्थक है ।
यहाँ रात गिनते हैँ, इसलिए इसे नवरात्र कहा जाता है ।
नौ रात्रियों का समाहार, समूह होने के कारण से द्वन्द समास होने के कारण यह शब्द पुर्लिँग रूप 'नवरात्र' में ही शुद्ध है ।
इसे नवरात्रि कहना त्रुटिपूर्ण माना गया है ।
हमारे शरीर को नौ मुख्य द्वारों वाला कहा गया है ।
इसके भीतर निवास करने वाली जीवनी शक्ति का नाम ही दुर्गा देवी है ।
इन मुख्य इन्द्रियों के अनुशासन, स्वच्छ्ता, तारतम्य स्थापित करने के प्रतीक रूप में, शरीर तंत्र को पूरे साल के लिए सुचारू रूप से क्रियाशील रखने के लिए नौ द्वारों की शुध्दि का पर्व नौ दिन मनाया जाता है ।
इनको व्यक्तिगत रूप से महत्व देने के लिए नौ दिन नौ दुर्गाओं के लिए कहे जाते हैं ।
शरीर को सुचारू रखने के लिए विरेचन, सफाई या शुध्दि प्रतिदिन तो हम करते ही हैं, किन्तु अंग-प्रत्यंगों की पूरी तरह से भीतरी सफाई करने के लिए हर छ: माह के अंतर से सफाई अभियान चलाया जाता है ।
सात्विक आहार के व्रत का पालन करने से शरीर की शुध्दि, साफ सुथरे शरीर में शुध्द बुद्धि, उत्तम विचारों से ही उत्तम कर्म, कर्मों से सच्चरित्रता और क्रमश: मन शुध्द होता है ।
स्वच्छ मन मंदिर में ही तो ईश्वर की शक्ति का स्थायी निवास होता है ।
नौ द्वार वाले शरीर रुपी दुर्ग के भीतर रहने वाली जीवनी शक्ति रूपी दुर्गा के नौ रूप हैं -
1. शैलपुत्री
2. ब्रह्मचारिणी
3. चंद्रघंटा
4. कूष्माण्डा
5. स्कन्दमाता
6. कात्यायनी
7. कालरात्रि
8. महागौरी
9. सिध्दीदात्री
इनका नौ जड़ी बूटी या ख़ास व्रत की चीजों से भी सम्बंध है, जिन्हेँ नवरात्र के व्रत में प्रयोग किया जाता है -
1. कुट्टू (शैलपुत्री)
2. दूध-दही (ब्रम्हचारिणी)
3. चौलाई (चंद्रघंटा)
4. पेठा (कूष्माण्डा)
5. श्यामक चावल (स्कन्दमाता)
6. हरी तरकारी (कात्यायनी)
7. काली मिर्च व तुलसी (कालरात्रि)
8. साबूदाना (महागौरी)
9. आंवला (सिध्दीदात्री)
क्रमश: ये नौ प्राकृतिक व्रत खाद्य पदार्थ हैं ।
भविष्योत्तर पुराण में और देवी भावगत के अनुसार, बेटों वाले परिवार में या पुत्र की चाहना वाले परिवार वालों को नवमी में व्रत खोलना चाहिए ।
वैसे अष्टमी, नवमी और दशहरे के चार दिन बाद की चौदस, इन तीनों की महत्ता 'दुर्गासप्तशती' में कही गई है ।
जय माता दी|
जय महाकाल |
नवरात्रि क्या है ??
वैज्ञानिक और आध्यात्मिक रहस्य
नवरात्र शब्द से नव अहोरात्रों (विशेष रात्रियां) का बोध होता है ।
इस समय शक्ति के नव रूपों की उपासना की जाती है ।
'रात्रि' शब्द सिद्धि का प्रतीक है ।
भारत के प्राचीन ऋषि-मुनियों ने रात्रि को दिन की अपेक्षा अधिक महत्व दिया है ।
इसलिए दीपावली, होलिका, शिवरात्रि और नवरात्र आदि उत्सवों को रात में ही मनाने की परंपरा है ।
यदि रात्रि का कोई विशेष रहस्य न होता, तो ऐसे उत्सवों को रात्रि न कह कर दिन ही कहा जाता ।
लेकिन नवरात्र के दिन, नवदिन नहीं कहे जाते ।
मनीषियों ने वर्ष में दो बार नवरात्रों का विधान बनाया है ।
चैत्र शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नौ दिन अर्थात नवमी तक ।
और इसी प्रकार ठीक छह मास बाद आश्विन शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से महानवमी अर्थात विजयादशमी के एक दिन पूर्व तक ।
परंतु सिद्धि और साधना की दृष्टि से शारदीय नवरात्रों को ज्यादा महत्वपूर्ण माना गया है ।
इन नवरात्रों में लोग अपनी आध्यात्मिक और मानसिक शक्ति संचय करने के लिए अनेक प्रकार के व्रत, संयम, नियम, यज्ञ, भजन, पूजन, योग साधना आदि करते हैं ।
कुछ साधक इन रात्रियों में पूरी रात पद्मासन या सिद्धासन में बैठकर आंतरिक त्राटक या बीज मंत्रों के जाप द्वारा विशेष सिद्धियां प्राप्त करने का प्रयास करते हैं ।
किँतु आजकल अधिकांश उपासक शक्ति पूजा रात्रि में नहीं, बल्कि पुरोहित को दिन में ही बुलाकर संपन्न करा देते हैं ।
अब तो पंडित और साधु-महात्मा भी अब नवरात्रों में पूरी रात जागना नहीं चाहते और न कोई आलस्य को त्यागना चाहता है ।
मनीषियों ने रात्रि के महत्व को अत्यंत सूक्ष्मता के साथ वैज्ञानिक परिप्रेक्ष्य में समझने और समझाने का प्रयत्न किया ।
रात्रि में प्रकृति के बहुत सारे अवरोध खत्म हो जाते हैं ।
आधुनिक विज्ञान भी इस बात से सहमत है ।
हमारे ऋषि-मुनि आज से हजारों वर्ष पूर्व ही प्रकृति के इन वैज्ञानिक रहस्यों को जान चुके थे ।
दिन में आवाज दी जाए तो वह दूर तक नहीं जाएगी, किंतु रात्रि को आवाज दी जाए तो वह बहुत दूर तक जाती है ।
इसके पीछे दिन के कोलाहल के अलावा एक वैज्ञानिक तथ्य यह भी है कि दिन में सूर्य की किरणें आवाज की तरंगों और रेडियो तरंगों को आगे बढ़ने से रोक देती हैं ।
रेडियो इस बात का जीता-जागता उदाहरण है ।
कम शक्ति के रेडियो स्टेशनों को दिन में पकड़ना अर्थात सुनना मुश्किल होता है, जबकि सूर्यास्त के बाद छोटे से छोटा रेडियो स्टेशन भी आसानी से सुना जा सकता है ।
वैज्ञानिक सिद्धांत यह है कि सूर्य की किरणें दिन के समय रेडियो तरंगों को जिस प्रकार रोकती हैं, उसी प्रकार मंत्र जाप की विचार तरंगों में भी दिन के समय रुकावट पड़ती है ।
इसीलिए ऋषि-मुनियों ने रात्रि का महत्व दिन की अपेक्षा बहुत अधिक बताया है ।
जो इस वैज्ञानिक तथ्य को ध्यान में रखते हुए रात्रियों में संकल्प और उच्च अवधारणा के साथ अपने शक्तिशाली विचार तरंगों को वायुमंडल में भेजते हैं, उनकी कार्यसिद्धि अर्थात मनोकामना सिद्धि, उनके शुभ संकल्प के अनुसार उचित समय और ठीक विधि के अनुसार करने पर अवश्य होती है ।
पृथ्वी द्वारा सूर्य की परिक्रमा के काल में एक साल की चार संधियाँ हैं ।
उनमें मार्च व सितंबर माह में पड़ने वाली गोल संधियों में साल के दो मुख्य नवरात्र पड़ते हैं ।
इस समय रोगाणु आक्रमण की सर्वाधिक संभावना होती है ।
ऋतु संधियों में अक्सर शारीरिक बीमारियाँ बढ़ती हैं, अत: उस समय स्वस्थ रहने के लिए, शरीर को शुध्द रखने के लिए और तनमन को निर्मल और पूर्णत: स्वस्थ रखने के लिए की जाने वाली प्रक्रिया का नाम 'नवरात्र' है ।
अमावस्या की रात से नवमी की दोपहर तक व्रत नियम चलने से नौ रात यानी 'नवरात्र' नाम सार्थक है ।
यहाँ रात गिनते हैँ, इसलिए इसे नवरात्र कहा जाता है ।
नौ रात्रियों का समाहार, समूह होने के कारण से द्वन्द समास होने के कारण यह शब्द पुर्लिँग रूप 'नवरात्र' में ही शुद्ध है ।
इसे नवरात्रि कहना त्रुटिपूर्ण माना गया है ।
हमारे शरीर को नौ मुख्य द्वारों वाला कहा गया है ।
इसके भीतर निवास करने वाली जीवनी शक्ति का नाम ही दुर्गा देवी है ।
इन मुख्य इन्द्रियों के अनुशासन, स्वच्छ्ता, तारतम्य स्थापित करने के प्रतीक रूप में, शरीर तंत्र को पूरे साल के लिए सुचारू रूप से क्रियाशील रखने के लिए नौ द्वारों की शुध्दि का पर्व नौ दिन मनाया जाता है ।
इनको व्यक्तिगत रूप से महत्व देने के लिए नौ दिन नौ दुर्गाओं के लिए कहे जाते हैं ।
शरीर को सुचारू रखने के लिए विरेचन, सफाई या शुध्दि प्रतिदिन तो हम करते ही हैं, किन्तु अंग-प्रत्यंगों की पूरी तरह से भीतरी सफाई करने के लिए हर छ: माह के अंतर से सफाई अभियान चलाया जाता है ।
सात्विक आहार के व्रत का पालन करने से शरीर की शुध्दि, साफ सुथरे शरीर में शुध्द बुद्धि, उत्तम विचारों से ही उत्तम कर्म, कर्मों से सच्चरित्रता और क्रमश: मन शुध्द होता है ।
स्वच्छ मन मंदिर में ही तो ईश्वर की शक्ति का स्थायी निवास होता है ।
नौ द्वार वाले शरीर रुपी दुर्ग के भीतर रहने वाली जीवनी शक्ति रूपी दुर्गा के नौ रूप हैं -
1. शैलपुत्री
2. ब्रह्मचारिणी
3. चंद्रघंटा
4. कूष्माण्डा
5. स्कन्दमाता
6. कात्यायनी
7. कालरात्रि
8. महागौरी
9. सिध्दीदात्री
इनका नौ जड़ी बूटी या ख़ास व्रत की चीजों से भी सम्बंध है, जिन्हेँ नवरात्र के व्रत में प्रयोग किया जाता है -
1. कुट्टू (शैलपुत्री)
2. दूध-दही (ब्रम्हचारिणी)
3. चौलाई (चंद्रघंटा)
4. पेठा (कूष्माण्डा)
5. श्यामक चावल (स्कन्दमाता)
6. हरी तरकारी (कात्यायनी)
7. काली मिर्च व तुलसी (कालरात्रि)
8. साबूदाना (महागौरी)
9. आंवला (सिध्दीदात्री)
क्रमश: ये नौ प्राकृतिक व्रत खाद्य पदार्थ हैं ।
भविष्योत्तर पुराण में और देवी भावगत के अनुसार, बेटों वाले परिवार में या पुत्र की चाहना वाले परिवार वालों को नवमी में व्रत खोलना चाहिए ।
वैसे अष्टमी, नवमी और दशहरे के चार दिन बाद की चौदस, इन तीनों की महत्ता 'दुर्गासप्तशती' में कही गई है ।
जय माता दी|
जय महाकाल |
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