Monday, September 16, 2013

प्राण सम्मोहन विद्या -- दैनिक जीवन की परेशानियों से छुटकारा पाने की कला|


प्राण सम्मोहन विद्या -- दैनिक जीवन की परेशानियों से छुटकारा पाने की कला
बहुधा हम अपने भाई बहन,संतान,पत्नी और मित्र की बुरी आदतों से दुखी रहते हैं किन्तु कई बार उन आदतों का शिकार व्यक्ति चाह कर भी उन अवगुणों का रूपांतरण नहीं कर पाता है तब ऐसे में यदि हमने “प्राणसम्मोहन बीज” का यदि प्रयोग सिद्ध किया हो तो उनकी सहायता कर उन्हें अवगुणों से मुक्त कर सकते हैं | जो भी साधक नित्य १० मिनट इस विशिष्ठ बीज मंत्र का अभ्यास करता है, वो बाह्य बाधाओं से ना सिर्फ सुरक्षित रहता है अपितु दिव्यात्माओं का सहयोग भी उसे सतत मिलता रहता है और वो जिस भी पदार्थ,व्यक्ति,मनोरथ की पूर्ती के लिए प्रयास करता है उसे सफलता मिलती ही है,शर्त यही है की भाव की पवित्रता यहाँ सर्वोपरि है | ऐसे साधक के मष्तिष्क और मन का सम्बन्ध समीप और दूरस्थ नजदीकी आत्मीयों के मन से हो जाता है और वो अभ्यास की तीव्रता के बाद न सिर्फ उनके भावों को पढ़ सकता है अपितु उनमे सकारात्मक परिवर्तन भी कर सकता है | अपने अधिकारी,पड़ोसियों की मानसिकता से ग्रस्त होकर हार मानने की अपेक्षा उनके व्यव्हार को स्वनुकूल कर लेना ही वास्तविक विजय कहलाती है |
प्रातः या सांयकाल दैनिक पूजन और गुरु मंत्र के बाद वज्रासन में बैठ कर सामने घृत दीप प्रज्वलित कर उस दीपशिखा को देखते हुए, दोनों हथेली को धीएरे धीरे रगड़ते हुए “हुं ह्रीं क्लीं” (HUM HREENG KLEEM) मंत्र का १० मिनट तक उच्चारण करे, उच्चारण उपांशु होना चाहिए | आपकी हथेली में गर्माहट आते जायेगी, १० मिनट के बाद अपनी हथेलियों को दोनों आँखों और माथे पर लगा ले | कुछ दिनों के अभ्यास के बाद आपकी हथेली को चाहे आप कितना भी जप्काल में तीव्रता से रगद ले किन्तु उनका तापमान सामान्य ही रहेगा,ये भ्यास १ महीने का होता है और १ महीने में सफलता मिल भी जाती है | १ माह के बाद आप अपने व्यक्तित्व में तो परिवर्तन देखते ही हैं साथ ही साथ जैसे ही आप किसी उत्तेजित या क्रोधित व्यक्ति को देखकर उसकी और दृष्टि एकाग्र करते हैं और मन ही मन मंत्र का जप प्रारंभ करते हैं आपका हाथ गर्म होने लगता है तब आप अपने हाथ को नीचे किये हुए या अपने पीछे ले जाकर (जैसी आपकी सुविधा हो ) अपने अंगूठे से तर्जनी और माध्यम को धीरे धीरे मसलने लगे और आप जैसे ही इस क्रिया को प्रारंभ करेंगे धीरे धीरे सामने वाला व्यक्ति शांत हो कर आपके लिए अनुकूल व्यवहार करने लगता है,और उसके शांत या अनुकूल होते ही आपकी हथेकी सामान्य तापक्रम पर आ जाती है जिसका अर्थ क्रिया का सम्पूर्ण होना होता है |
इस साधना के विविध पक्ष हैं जिनका प्रयोग कर दिव्यात्माओं से संपर्क स्थापित किया जा सकता है, विचार परिवर्तन किया जा सकता है, विचारों को जाना जा सकता है,प्राण उर्जा को तीव्रता को बढ़ाया जा सकता है,मानसिक रोग की समाप्ति की जा सकती है,उन सब के बारे में निकट भविष्य में पूरी जानकारी रखूंगी, आप इस प्रयोग की तीव्रता को बगैर करे नहीं समझ पाएंगे,इसके लिए गंभीरता और वसुधैव कुटुम्बकम की भावना होना अनिवार्य ही तो है | 
जय महाकाल |

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